करवा चौथ के दिन ज्यादातर महिलाएं सोलह श्रृंगार करती है और चांद को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोलती है। करवा चौथ के व्रत में इस दिन पढ़े जाने वाली व्रत कथा का भी विशेष महत्व बताया जाता है।
एक साहूकार था उसके साथ पुत्र और एक पुत्री थी। एक दिन अचानक साहूकार की तबीयत खराब हो जाती है, साहूकार मरने से पहले अपनी पुत्री की जिम्मेदारी अपने सात पुत्र को सौंपते हुए कह जाता है कि अपनी बहन का ध्यान रखना और साहूकार की मृत्यु हो जाती है।
सात भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते हैं । यहां तक की जब तक बहन को खाना नहीं खिला देते तब तक खुद भी नहीं खाते थे। बहन की शादी हुई, और वह अपने घर चली गई सातो भाई भी अपनी गृहस्थी में खुश थे, बहन जब मायके आई तो उसकी भाभियों ने उसका खूब स्वागत सत्कार किया। करवा चौथ का व्रत आया सातों भाभियों के साथ बहन भी करवा चौथ का व्रत की। जब भाई अपने अपने व्यापार और व्यवसाय से निबट कर घर आए तो दिखा की बहन का चेहरा सूखा हुआ है, और बहन मुरझाई सी लग रही है जब वे खाना खाने गए तो बहन को भी भोजन ग्रहण करने के लिए कहा, लेकिन बहन ने साफ इंकार करते हुए कहां की मेरा करवा चौथ का व्रत है, मैं तब तक अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगी जब तक की चांद को ना देख लु। भाइयों को बहन को देखकर अच्छा नहीं लगा उन्होंने आपस में एक योजना बनाई।
पीपल के पेड़ पर छोटा भाई एक मशाल जलाकर खड़ा हो गया दूर से मशाल ऐसे दिख रहा था जैसे की पूर्णिमा का चांद दिख गया हो, बड़ा भाई आया और बोला कि देखो बहन चांद उदित हो गया है, अब तुम अपना व्रत तोड़ सकती हो। बहन ने जैसे ही पहला ग्रास तोडा तो उसमे बाल आ गया , दूसरा तोड़ा इतने में उसके ससुराल से बुलावा आ गया की लड़की को तुरंत ससुराल भेजो । जब माँ ने बेटी को विदा करने के लिए कपड़ो का बक्सा खोला तो उसमे सबसे पहले काला कपड़ा ही निकला तब माँ इसे अपशगुन मान कर बहुत डर गई ।उसने अपनी बेटी को एक चाँदी का सिक्का देते हुए कहा कि “तुझे रास्ते में जो भी मिले उसके पैर छूती जाना और जो तुझे सुहागन होने का आशीर्वाद दे उसे ये सिक्का दे देना और अपने पल्लू पर गांठ बांध लेना” ।
बह पुरे रास्ते ऐसा ही करती गई पर किसी ने उसे सुहागन होने का आशीर्वाद नही दिया । जब वह अपने ससुराल पहुचीं तो बाहर उसकी जेठुती खेल रही थी उसने उसके पैर छुए तो उसने सदा सुहागन का आशीर्वाद दिया तो उसने सिक्का जेठुती को दिया और पल्लू पर गांठ बांध ली । जब घर के अन्दर गई तो देखा की उसका पति की मृत्यु हो चुकी है और वो घर के अन्दर पड़ा है | जब उसके पति को जलाने के लिए ले जाने लगे तो उसने नही ले जाने दिया ,सब गांववालों ने कहा कि बह इस लाश के साथ गाँव में नहीं रह सकती तो उसने गाँव के बाहर एक झोपडी बना ली और वह उसमे रहने लगी और अपने पति की सेवा करने लगी । रोज घर से बच्चे उसे खाना दे जाते । कुछ समय बाद माघ की चौथ आई तो उसने व्रत किया । रात को चौथ माता गाजती गरजती आई तो उसने माता के पैर पकड़ लिए ,माता पैर छुड़ाने लगी बोली ” सात भाइयो की भूखी बहिन मेरे पैर छोड़ “ जब उसने पैर नही छोड़े तो चौथ माता बोली कि ” मैं कुछ नही कर सकती मेरे से बड़ी बैशाख की चौथ आएगी उसके पैर पकड़ना ,कुछ समय बाद बैशाख की चौथ आई तो उसने कहा कि “मैं कुछ नही कर सकती मेरे से बड़ी भादवे की चौथ आएगी उसके पैर पकड़ना ,जब भादवे की चौथ आई तो उसने भी यही कहा कि “मैं कुछ नही कर सकती मेरे से बड़ी कार्तिक चौथ है वो ही तेरे पति को जीवन दे सकती है लेकिन वो तेरे से सुहाग का सामान मांगेगी तो तू वो सब तैयार रखना लेकिन मैंने तुझे ये सब बताया है ऐसा मत कहना “,जब कार्तिक चौथ आई तो उसने अपने पति के लिए व्रत रखा । रात को चौथ माता आई तो उसने पैर पकड़ लिए तो माता बोली “सात भाइयो की लाड़ली भूखी बहन , घणी तिसाई ,पापिनी मेरे पैर छोड़ “ तब वो बोली कि “माता मेरे से भूल हो गई मुझे माफ कर दो ,और मेरे पति को जीवन दान दो”
जब उसने माता के पैर नही छोड़े तो माता बोली कि “ठीक है जो सामान मैं मांगू वो मुझे लाकर दे”,माता ने जो सामान माँगा वो उसने लाकर दे दिया । तब चौथ माता बोली कि “तुझे ये सब किसने बताया “ ,वो बोली कि ” माता मैं इस जंगल में अकेली रहती हूँ मुझे ये सब बताने यहाँ कौन आएगा “ चौथ माता ने माँग में से सिंदूर लिया, आँख में से काजल व चिटली अंगुली से मेहँदी निकालकर उसके पति के छिटा तो उसका पति जीवित हो गया ,माता ने उसके पति को जीवित कर दिया और सदा सुहागन का आशीर्वाद दिया ।
सुबह बच्चे जब खाना लेकर आये ,तो अपने चाचा को जीवित पाया । बच्चे दौडकर घर गये और सबको बताया कि “चाचा जीवित हो गए “। जब सब लोग वहा गए तो देखा की बच्चे सच कह रहे है । अपने बेटे को जीवित देखकर सास बहु के पैर पड़ने लगी तो बहु बोली “सासुजी आप ये क्या कर रही है मैंने कुछ नहीं किया ये तो चौथ माता ने किया है ” ।
चौथ माता जैसे उसको सुहाग दिया वैसे सभी को देना -जय मां करवा चौथ की!